अयूब की कहानी
परिचय
बहुत समय पहले, पूर्वी भूमि में उज़ नामक एक स्थान पर एक धनी और धर्मपरायण व्यक्ति रहता था, जिसका नाम अयूब था। अयूब के पास सात पुत्र और तीन पुत्रियाँ थीं। वह अत्यंत समृद्ध था, उसके पास बड़ी संख्या में मवेशी, ऊंट, भेड़ें, और नौकर-चाकर थे। अयूब ईश्वर का परम भक्त था और सदैव बुराई से दूर रहता था। उसकी जीवनशैली और धर्मनिष्ठा सभी के लिए एक उदाहरण थी।
स्वर्गीय सभा और शैतान की चुनौती
एक दिन, स्वर्गदूत ईश्वर के सामने उपस्थित हुए, और उनके साथ शैतान भी आया। ईश्वर ने शैतान से पूछा, "क्या तुमने मेरे सेवक अयूब पर ध्यान दिया है? पृथ्वी पर उसके जैसा धर्मी और सच्चा व्यक्ति कोई नहीं है।"
शैतान ने उत्तर दिया, "अयूब का विश्वास केवल उसकी समृद्धि के कारण है। यदि आप उसकी सारी संपत्ति छीन लें, तो वह निश्चित ही आपको श्राप देगा।"
ईश्वर ने शैतान को अनुमति दी कि वह अयूब की संपत्ति और परिवार को नुकसान पहुंचा सकता है, परंतु उसके शरीर को नहीं छू सकता।
संपत्ति और परिवार की हानि
एक दिन, अयूब अपने घर में बैठा था, तभी एक दूत भागता हुआ आया और कहा, "साबेइयों ने आपके बैलों और गधों को चुरा लिया और आपके नौकरों को मार डाला। मैं ही एकमात्र बचा हूँ जो आपको यह बताने आया हूँ।"
अयूब यह सुन ही रहा था कि एक और दूत आया और बोला, "आकाश से आग गिरी और आपकी भेड़ों और नौकरों को जला दिया। मैं ही एकमात्र बचा हूँ जो आपको यह बताने आया हूँ।"
तभी तीसरा दूत आया और कहा, "कसदी सेना ने आपके ऊंटों को चुरा लिया और आपके नौकरों को मार डाला। मैं ही एकमात्र बचा हूँ जो आपको यह बताने आया हूँ।"
अभी यह सब सुन ही रहा था कि एक और दूत आया और बोला, "आपके पुत्र और पुत्रियाँ सबसे बड़े भाई के घर में भोज कर रहे थे। अचानक एक भारी हवा ने घर के चारों कोनों को पकड़ लिया और घर गिर पड़ा। सभी मारे गए। मैं ही एकमात्र बचा हूँ जो आपको यह बताने आया हूँ।"
अयूब की प्रतिक्रिया
यह सब सुनकर अयूब ने अपने वस्त्र फाड़े, सिर मुंडाया, और धरती पर गिरकर पूजा की, "नंगा आया था मैं अपनी माँ के गर्भ से और नंगा ही लौट जाऊँगा। ईश्वर ने दिया और ईश्वर ने ही लिया; ईश्वर का नाम धन्य हो।"
शैतान का दूसरा प्रयास
एक बार फिर, स्वर्गदूत ईश्वर के सामने उपस्थित हुए और उनके साथ शैतान भी आया। ईश्वर ने शैतान से पूछा, "क्या तुमने मेरे सेवक अयूब पर ध्यान दिया है? उसके जैसे धर्मी और सच्चे व्यक्ति कोई नहीं है। तुमने उसे अकारण दुख दिया, फिर भी उसने अपना विश्वास नहीं खोया।"
शैतान ने उत्तर दिया, "चमड़ी के बदले चमड़ी! मनुष्य अपनी जान के बदले में सब कुछ दे सकता है। यदि आप उसकी जान को नुकसान पहुंचाने दें, तो वह आपको श्राप देगा।"
ईश्वर ने शैतान को अनुमति दी कि वह अयूब के शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है, परंतु उसकी जान नहीं ले सकता।
अयूब की बीमारी
शैतान ने अयूब को सिर से पैर तक गहरे और कष्टदायक फोड़े दिए। अयूब ने राख में बैठकर टूटे हुए मटके के टुकड़े से अपने शरीर को खरोंचने लगा। उसकी पत्नी ने उसे कहा, "क्या तुम अभी भी अपनी धर्मनिष्ठा पर टिके हो? ईश्वर को श्राप दो और मर जाओ।"
अयूब ने उत्तर दिया, "तुम मूर्ख स्त्री की तरह बात कर रही हो। क्या हम ईश्वर से केवल अच्छा ही ग्रहण करेंगे और बुरा नहीं?"
अयूब के मित्रों का आगमन
अयूब के तीन मित्र - एलीफाज, बिल्दद, और सोफर - उसे सांत्वना देने आए। वे सात दिन और सात रात तक उसके साथ बैठे रहे, बिना कुछ बोले, क्योंकि अयूब का दुःख बहुत बड़ा था। इसके बाद, अयूब ने अपने जन्म को कोसा और अपने कष्टों पर चर्चा की। उसने कहा, "क्यों नष्ट नहीं हुआ मैं जन्म के समय? क्यों न मरा मैं गर्भ से निकलते ही?"
मित्रों का संवाद
अयूब के मित्रों ने यह तर्क दिया कि अयूब ने अवश्य ही कोई पाप किया होगा, जिसके कारण उसे यह दंड मिल रहा है। एलीफाज ने कहा, "किस निर्दोष व्यक्ति को कभी नष्ट होते देखा है? सोचो, क्या तुम्हारी धार्मिकता तुम्हें बचा सकती है?"
बिल्दद ने कहा, "यदि तुम ईश्वर की खोज करोगे और उससे प्रार्थना करोगे, तो वह तुम्हारी समृद्धि को बहाल करेगा।"
सोफर ने कहा, "तुम्हारी बुराई तुम्हारे दंड से कम है। यदि तुम अपनी बुराई को दूर करोगे, तो तुम्हारी मुक्ति होगी।"
परंतु अयूब ने अपनी निर्दोषता बनाए रखी और ईश्वर से न्याय की मांग की। उसने कहा, "ईश्वर जानता है कि मैं निर्दोष हूँ। मैं उससे न्याय की याचना करता हूँ।"
ईश्वर का उत्तर
अंत में, ईश्वर ने अयूब से बात की और उसे बताया कि मनुष्य की बुद्धि ईश्वर की योजना और उद्देश्य को समझने में असमर्थ है। ईश्वर ने अयूब के मित्रों को उसकी सही दिशा में मार्गदर्शन न करने के लिए फटकारा और अयूब को आदेश दिया कि वह उनके लिए प्रार्थना करे।
अयूब का पुनर्स्थापन
अयूब ने अपने मित्रों के लिए प्रार्थना की और ईश्वर ने उसकी सारी संपत्ति और स्वास्थ्य को बहाल कर दिया। उसकी समृद्धि पहले से भी दोगुनी हो गई, और उसे दस और संतानें मिलीं। अयूब ने एक लंबा और समृद्ध जीवन जिया और ईश्वर की कृपा का अनुभव किया।
उपसंहार
अयूब की कहानी हमें सिखाती है कि ईश्वर पर विश्वास और धैर्य बनाए रखने से हम कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं और अंततः ईश्वर की आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। यह कहानी हमें यह भी बताती है कि जीवन में चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ आएं, हमें ईश्वर पर विश्वास और धैर्य बनाए रखना चाहिए।
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