Cane & Abel: पूरी कहानी
प्रस्तावना
कैन और हाबिल की कहानी बाइबल के उत्पत्ति पुस्तक (Genesis) में बताई गई है। यह कहानी हमें सिखाती है कि कैसे ईर्ष्या और नफरत विनाश का कारण बन सकते हैं। यह कहानी आदम और हव्वा के दो बेटों, कैन और हाबिल, के बीच के संघर्ष के बारे में है।
कहानी
आदम और हव्वा, जिन्होंने स्वर्ग से निष्कासित होने के बाद धरती पर जीवन शुरू किया, उनके दो बेटे थे। बड़े बेटे का नाम कैन था और वह एक किसान था, जबकि छोटे बेटे हाबिल का काम भेड़-बकरी चराना था।
एक दिन, कैन और हाबिल दोनों ने भगवान के लिए भेंट चढ़ाई। कैन ने अपने खेत की उपज से कुछ अन्न भगवान को अर्पित किया, जबकि हाबिल ने अपने झुंड की पहली और सबसे बेहतरीन भेड़ें भगवान को चढ़ाईं। भगवान ने हाबिल की भेंट को स्वीकार किया, लेकिन कैन की भेंट को अस्वीकार कर दिया।
ईर्ष्या और क्रोध
भगवान द्वारा हाबिल की भेंट को स्वीकार किए जाने के बाद, कैन को बहुत ईर्ष्या और क्रोध आया। भगवान ने कैन को चेतावनी दी कि उसे अपने क्रोध को नियंत्रित करना चाहिए, नहीं तो पाप उस पर हावी हो जाएगा। लेकिन कैन ने भगवान की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया।
हत्या
कैन ने हाबिल से कहा कि वे दोनों खेत में जाएं। जब वे खेत में पहुंचे, तो कैन ने हाबिल पर हमला किया और उसकी हत्या कर दी। यह मानव इतिहास में पहली हत्या थी।
भगवान का न्याय
भगवान ने कैन से पूछा, "हाबिल कहाँ है?" कैन ने उत्तर दिया, "मुझे नहीं पता। क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ?" लेकिन भगवान सब कुछ जानते थे और उन्होंने कैन से कहा कि हाबिल का खून धरती से पुकार रहा है।
भगवान ने कैन को दंडित किया। उन्होंने कहा कि कैन को उसकी खेती में सफलता नहीं मिलेगी और उसे धरती पर एक भटकता हुआ व्यक्ति बनकर रहना होगा। कैन ने भगवान से कहा कि यह सजा बहुत कठोर है और जो भी उसे देखेगा, वह उसे मार डालेगा। तब भगवान ने कैन के माथे पर एक निशान लगाया, जिससे कोई भी उसे मारने की हिम्मत न करे।
निष्कर्ष
कैन और हाबिल की कहानी हमें यह सिखाती है कि ईर्ष्या और नफरत से हमेशा बुरा परिणाम ही निकलता है। हमें अपने क्रोध और ईर्ष्या को नियंत्रित करना चाहिए और दूसरों के प्रति प्रेम और सहानुभूति रखनी चाहिए। यह कहानी यह भी सिखाती है कि भगवान का न्याय अटल है और हमें अपने कर्मों का फल जरूर मिलता है।
Why god not accept Cane Offering?
कैन और हाबिल की कहानी में, भगवान ने हाबिल की भेंट को स्वीकार किया लेकिन कैन की भेंट को अस्वीकार कर दिया। इसके कई कारण बताए जाते हैं:
1. भेंट की गुणवत्ता
हाबिल ने अपनी भेंट के रूप में अपने झुंड की पहली और सबसे बेहतरीन भेड़ें भगवान को अर्पित कीं, जो उसकी सबसे कीमती संपत्ति थीं। वहीं, कैन ने अपने खेत की उपज से कुछ अन्न भगवान को अर्पित किया, जो शायद उसकी सबसे अच्छी उपज नहीं थी। इसका मतलब यह हो सकता है कि हाबिल ने अपने दिल से और पूरी श्रद्धा के साथ अपनी सबसे मूल्यवान वस्तु को भगवान को समर्पित किया, जबकि कैन ने ऐसा नहीं किया।
2. हृदय की स्थिति
भगवान ने न केवल भेंट को देखा, बल्कि भेंट चढ़ाने वाले के हृदय और भावनाओं को भी देखा। ऐसा माना जाता है कि हाबिल ने अपनी भेंट पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ अर्पित की थी, जबकि कैन का हृदय और मन सही जगह पर नहीं था। कैन ने शायद बिना पूरी श्रद्धा और विश्वास के अपनी भेंट अर्पित की।
3. मनोवृत्ति और भावनाएँ
कैन का मनोवृत्ति और ईर्ष्या भगवान को स्पष्ट थी। जब उसकी भेंट अस्वीकार की गई, तो उसकी प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट हो गया कि उसके मन में ईर्ष्या, क्रोध और असंतोष भरा हुआ था। भगवान ने पहले ही देख लिया था कि कैन का हृदय शुद्ध नहीं है, और यही कारण था कि उन्होंने उसकी भेंट को स्वीकार नहीं किया।
4. धार्मिक सिद्धांत
कुछ धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार, पशु बलि (जो हाबिल ने दी) को भगवान ने अधिक महत्वपूर्ण और पवित्र माना, जबकि फसल की बलि (जो कैन ने दी) को नहीं। यह भी एक कारण हो सकता है कि हाबिल की भेंट को स्वीकार किया गया और कैन की भेंट को नहीं।
इन सभी कारणों को मिलाकर, भगवान ने हाबिल की भेंट को स्वीकार किया क्योंकि वह सच्चे दिल, श्रद्धा और समर्पण के साथ अर्पित की गई थी, जबकि कैन की भेंट को इन गुणों की कमी के कारण अस्वीकार कर दिया गया।
Why god accept Habil offering ?
भगवान ने हाबिल की भेंट को स्वीकार करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं:
1. **भेंट की गुणवत्ता और महत्व**
हाबिल ने अपनी भेंट के रूप में अपने झुंड की पहली और सबसे बेहतरीन भेड़ें भगवान को अर्पित कीं। यह उसकी सबसे कीमती संपत्ति थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि हाबिल ने भगवान को सबसे मूल्यवान और महत्वपूर्ण वस्तु अर्पित की, जो उसकी श्रद्धा और सम्मान को दर्शाता है।
2. **हृदय और नीयत की शुद्धता**
भगवान न केवल भेंट को, बल्कि भेंट चढ़ाने वाले के हृदय और नीयत को भी देखते हैं। हाबिल ने अपनी भेंट पूरी निष्ठा, सच्चाई और प्रेम के साथ भगवान को समर्पित की थी। उसकी नीयत शुद्ध और उसका दिल भगवान के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित था।
3. **सच्ची भक्ति और श्रद्धा**
हाबिल ने अपनी भेंट पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ अर्पित की। उसकी भक्ति और भगवान के प्रति उसका प्रेम उसकी भेंट में स्पष्ट रूप से झलकता है। भगवान सच्ची भक्ति और श्रद्धा को महत्व देते हैं और इसे स्वीकार करते हैं।
4. **प्रतीकात्मक महत्व**
पशु बलि का धार्मिक और प्रतीकात्मक महत्व अधिक था। पशु बलि को पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता था, और इसे भगवान के प्रति समर्पण और भक्ति का प्रतीक माना जाता था। हाबिल की भेंट इस प्रतीकात्मक महत्व को भी दर्शाती है।
5. **कर्म और आचरण**
हाबिल का आचरण और उसके कर्म भी भगवान की नजर में सही थे। उसके कर्म और उसकी नीयत उसकी भेंट में झलकती थी, जो भगवान को प्रिय थी।
इन सभी कारणों को मिलाकर, भगवान ने हाबिल की भेंट को स्वीकार किया क्योंकि वह सच्चे दिल, निष्ठा, श्रद्धा और प्रेम के साथ अर्पित की गई थी। यह भेंट न केवल भौतिक रूप से महत्वपूर्ण थी, बल्कि उसकी नीयत और उसके दिल की पवित्रता को भी दर्शाती थी, जिसे भगवान ने स्वीकार किया।
बाइबल में कई आयतें हैं जो ईर्ष्या और नफरत के विनाशकारी परिणामों के बारे में बताती हैं। यहाँ कुछ प्रमुख आयतें दी गई हैं:
1. **कैन और हाबिल की कहानी (उत्पत्ति 4:3-8)**
> **उत्पत्ति 4:3-8 (Genesis 4:3-8)**
> "कुछ समय बाद, कैन अपने खेत की उपज में से कुछ भगवान के लिए भेंट लाया। हाबिल भी अपने झुंड के पहलौठे और उनकी चर्बी भगवान के लिए लाया। भगवान ने हाबिल और उसकी भेंट को देखा, लेकिन कैन और उसकी भेंट को नहीं देखा। इस पर कैन बहुत क्रोधित हुआ, और उसका चेहरा उतर गया। तब भगवान ने कैन से कहा, 'तुम क्रोधित क्यों हो? और तुम्हारा चेहरा क्यों उतर गया है? यदि तुम सही करते हो, तो क्या तुम्हें स्वीकार नहीं किया जाएगा? लेकिन यदि तुम सही नहीं करते हो, तो पाप दरवाजे पर छिपा हुआ है; वह तुम्हें चाहता है, लेकिन तुम्हें उस पर अधिकार करना चाहिए।' और कैन ने अपने भाई हाबिल से कहा, 'चलो खेत में चलें।' जब वे खेत में थे, तो कैन ने अपने भाई हाबिल पर हमला किया और उसे मार डाला।"
2. **नीतिवचन (Proverbs) 14:30**
> **नीतिवचन 14:30 (Proverbs 14:30)**
>
> "शांत मन जीवन का जीवन है, लेकिन ईर्ष्या हड्डियों को सड़ा देती है।"
3. **नीतिवचन (Proverbs) 27:4**
> **नीतिवचन 27:4 (Proverbs 27:4)**
>
> "क्रोध निर्दयी होता है और क्रोध प्रवाह के समान है, लेकिन ईर्ष्या कौन सह सकता है?"
4. **याकूब (James) 3:14-16**
> **याकूब 3:14-16 (James 3:14-16)**
>
> "लेकिन यदि तुम अपने दिल में कड़वी ईर्ष्या और स्वार्थी महत्वाकांक्षा रखते हो, तो गर्व मत करो और सच्चाई के खिलाफ झूठ मत बोलो। यह ज्ञान स्वर्ग से नहीं आता है, बल्कि यह सांसारिक, अस्वाभाविक, और शैतानी है। जहाँ ईर्ष्या और स्वार्थी महत्वाकांक्षा होती है, वहाँ अव्यवस्था और हर तरह की बुराई होती है।"
5. **गलातियों (Galatians) 5:19-21**
> **गलातियों 5:19-21 (Galatians 5:19-21)**
>
> "शरीर के काम प्रकट होते हैं: वे यौन अनैतिकता, अशुद्धता, व्यभिचार, मूर्तिपूजा, जादू-टोना, शत्रुता, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध का भड़कना, स्वार्थी महत्वाकांक्षा, फूट, विभाजन, ईर्ष्या, नशे में धुत रहना, उच्छृंखलता और इसके जैसे हैं। मैं तुम्हें पहले की तरह चेतावनी देता हूँ, जो ऐसी चीजें करते हैं वे परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।"
6. **1 योहन (1 John) 3:12**
> **1 योहन 3:12 (1 John 3:12)**
>
> "कैन की तरह मत बनो, जो उस दुष्ट का था और जिसने अपने भाई की हत्या की। और उसने उसकी हत्या क्यों की? क्योंकि उसके कार्य बुरे थे और उसके भाई के कार्य धर्मी थे।"
इन आयतों से यह स्पष्ट होता है कि बाइबल ईर्ष्या और नफरत को अत्यंत नकारात्मक और विनाशकारी मानती है। ये भावनाएँ न केवल व्यक्ति को भीतर से सड़ा देती हैं बल्कि समाज में अव्यवस्था और बुराई को भी जन्म देती हैं। इसलिए, हमें अपने दिलों में प्रेम, शांति और समर्पण का भाव रखना चाहिए।
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