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Ten Commandments

 বাইবেলে উল্লিখিত দশটি আদেশ (দশ আজ্ঞা) হল নৈতিক এবং আধ্যাত্মিক আচরণের জন্য অত্যন্ত গুরুত্বপূর্ণ নিয়ম। এই আদেশগুলো ঈশ্বর মূসাকে সিনাই পর্বতে প্রদান করেন এবং এগুলো বাইবেলের নির্বাণ অধ্যায় এবং দ্বিতীয় আইন গ্রন্থে লিপিবদ্ধ আছে।

দশটি আদেশ (নির্গমন ২০:১-১৭):

১. "তুমি আমার ছাড়া অন্য কোন দেবতা রাখবে না।"

  • একমাত্র সত্য ঈশ্বরের উপাসনা কর; তাঁকে ছাড়া অন্য কিছুকে ঈশ্বরের উপরে স্থান দিও না।

২. "তুমি নিজের জন্য কোনো মূর্তি বা প্রতিমা তৈরি করো না।"

  • কোনো মূর্তি বা প্রতিমা তৈরি করে তার উপাসনা করো না, কারণ একমাত্র ঈশ্বরই উপাস্য।

৩. "তুমি তোমার ঈশ্বরের নাম কোনো অসৎ কাজে ব্যবহার করবে না।"

  • ঈশ্বরের নামকে অসম্মানজনক বা অনুচিতভাবে ব্যবহার করো না।

৪. "বিশ্রামবার মনে রেখো, সেটিকে পবিত্র রাখো।"

  • বিশ্রামবার (সপ্তম দিন) আলাদা করে বিশ্রাম ও উপাসনার জন্য রাখো।

৫. "তুমি তোমার পিতা-মাতাকে সম্মান করবে।"

  • তোমার পিতা-মাতার প্রতি শ্রদ্ধা ও আনুগত্য প্রদর্শন করো।

৬. "তুমি হত্যা করো না।"

  • অন্য কোনো ব্যক্তির জীবন অন্যায়ভাবে কেড়ে নিও না।

৭. "তুমি ব্যভিচার করো না।"

  • তোমার স্ত্রী বা স্বামীর প্রতি বিশ্বস্ত থাকো; বিবাহের বাইরে যৌন সম্পর্ক করো না।

৮. "তুমি চুরি করো না।"

  • অন্য কারও জিনিস চুরি করো না।

৯. "তুমি তোমার প্রতিবেশীর বিরুদ্ধে মিথ্যা সাক্ষ্য দিও না।"

  • মিথ্যা বলো না বা অন্যদের বিরুদ্ধে মিথ্যা সাক্ষ্য দিও না।

১০. "তুমি লোভ করবে না।" - অন্যের সম্পত্তি, সম্পর্ক বা মর্যাদার প্রতি ঈর্ষান্বিত বা লোভী হও না।

এই আদেশগুলো ইহুদি ও খ্রিস্টান ধর্মের নৈতিক আচরণের মূল ভিত্তি হিসেবে কাজ করে। এগুলো ঈশ্বরের প্রতি শ্রদ্ধা, অন্যদের প্রতি সম্মান এবং সৎ ও ন্যায়পরায়ণ জীবন যাপনের গুরুত্বকে তুলে ধরে।



The Ten Commandments, also known as the Decalogue, are a set of biblical principles that are fundamental to both Jewish and Christian ethics. They were given by God to Moses on Mount Sinai and are recorded in the books of Exodus and Deuteronomy in the Bible.

Here are the Ten Commandments as found in Exodus 20:1-17:

  1. "You shall have no other gods before Me."

    • Worship only the one true God; do not place anything above Him.
  2. "You shall not make for yourself an idol."

    • Do not create or worship idols or images of any kind, as only God is worthy of worship.
  3. "You shall not take the name of the Lord your God in vain."

    • Do not misuse God's name in a disrespectful or irreverent way.
  4. "Remember the Sabbath day, to keep it holy."

    • Set aside the Sabbath day (the seventh day) as a day of rest and worship.
  5. "Honor your father and your mother."

    • Show respect and obedience to your parents.
  6. "You shall not murder."

    • Do not take the life of another person unjustly.
  7. "You shall not commit adultery."

    • Remain faithful to your spouse; do not engage in sexual relations outside of marriage.
  8. "You shall not steal."

    • Do not take anything that does not belong to you.
  9. "You shall not bear false witness against your neighbor."

    • Do not lie or give false testimony against others.
  10. "You shall not covet."

    • Do not desire or be envious of what others have, whether it be their possessions, relationships, or status.

These commandments serve as the foundation for moral conduct and religious practice in both Judaism and Christianity. They emphasize the importance of honoring God, respecting others, and living a life of integrity and righteousness.


बाइबल में दस आज्ञाओं का गहन अध्ययन

दस आज्ञाएँ, जिन्हें "दशविधि" भी कहा जाता है, बाइबल की सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक शिक्षाओं में से एक हैं। ये आज्ञाएँ परमेश्वर द्वारा मूसा को सीनै पर्वत पर दी गई थीं, और इन्हें यहूदी, ईसाई और इस्लामी धर्मों में नैतिकता और आस्था के आधारभूत नियमों के रूप में माना जाता है। ये आज्ञाएँ मुख्य रूप से नैतिक और आध्यात्मिक दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं जो मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। यहाँ दस आज्ञाओं का गहन विश्लेषण किया गया है:

1. "तू मेरे सिवा और किसी को ईश्वर न मानना।" (निर्गमन 20:3)

  • यह आज्ञा एकेश्वरवाद (सिर्फ एक परमेश्वर के विश्वास) की नींव रखती है। परमेश्वर चाहते हैं कि लोग केवल उन्हीं की पूजा करें और अन्य किसी देवता की ओर न मुड़ें। यह आज्ञा परमेश्वर के साथ व्यक्तिगत और विशिष्ट संबंध की महत्ता को दर्शाती है।

2. "तू अपने लिए कोई मूर्ति न बनाना।" (निर्गमन 20:4-6)

  • यह आज्ञा मूर्तिपूजा के खिलाफ एक चेतावनी है। इसमें यह निर्देश है कि परमेश्वर की कोई मूर्ति या प्रतिमा नहीं बनानी चाहिए। परमेश्वर अदृश्य और सर्वत्र मौजूद हैं, इसलिए उन्हें किसी वस्तु या प्रतिमा में सीमित करना अनुचित और अपमानजनक है।

3. "तू अपने परमेश्वर यहोवा का नाम व्यर्थ न लेना।" (निर्गमन 20:7)

  • यह आज्ञा परमेश्वर के नाम के प्रति सम्मान दिखाने की महत्ता के बारे में बताती है। परमेश्वर के नाम का झूठी शपथ, अपशब्द या अपमानजनक तरीके से उपयोग करना निषिद्ध है। यह आज्ञा परमेश्वर की पवित्रता का सम्मान करने की दिशा में निर्देश करती है।

4. "विश्राम दिन को पवित्र मानकर उसका स्मरण रखना।" (निर्गमन 20:8-11)

  • यह आज्ञा सब्त या विश्राम दिवस का पालन करने के लिए निर्देशित करती है। यह दिन केवल विश्राम के लिए ही नहीं, बल्कि परमेश्वर के प्रति विश्वास और सम्मान व्यक्त करने के लिए है। सब्त दिवस को परमेश्वर की सृष्टि के कार्य के पूर्ण होने के स्मरण के रूप में मनाया जाता है, और यह हमारे जीवन में आध्यात्मिक नवीनीकरण की आवश्यकता को दर्शाता है।

5. "तू अपने माता-पिता का सम्मान करना।" (निर्गमन 20:12)

  • यह आज्ञा परिवार में माता-पिता के सम्मान और उनके अधिकार की महत्ता पर जोर देती है। माता-पिता बच्चों के लिए परमेश्वर के प्रतिनिधि होते हैं, और उनका सम्मान करना परमेश्वर के प्रति सम्मान का प्रतीक है। यह आज्ञा परिवार में शांति और अनुशासन बनाए रखने में भी सहायक है।

6. "तू हत्या न करना।" (निर्गमन 20:13)

  • यह आज्ञा जीवन की पवित्रता और उसकी महत्ता के बारे में बताती है। मानव जीवन परमेश्वर की रचना है, और इसे किसी भी व्यक्ति द्वारा हत्या करना निषिद्ध है। यह आज्ञा केवल शारीरिक हत्या के खिलाफ ही नहीं, बल्कि मन और आत्मा में पनपने वाली हिंसा और क्रोध के खिलाफ भी सचेत करती है।

7. "तू व्यभिचार न करना।" (निर्गमन 20:14)

  • यह आज्ञा विवाह के पवित्रता की रक्षा के लिए निर्देशित करती है। परमेश्वर ने विवाह को एक पवित्र बंधन के रूप में स्थापित किया है, और यह आज्ञा व्यभिचार या अनैतिक यौन संबंधों से दूर रहने के लिए प्रेरित करती है। यह विवाह में विश्वासघात और इसके सामाजिक प्रभावों के प्रति सचेत करती है।

8. "तू चोरी न करना।" (निर्गमन 20:15)

  • यह आज्ञा दूसरों की संपत्ति के अधिकार और सम्मान पर जोर देती है। यह चोरी, धोखाधड़ी, और अनुचित तरीकों से संपत्ति अर्जित करने से दूर रहने के लिए निर्देशित करती है। यह आज्ञा समाज में न्याय और नैतिकता की स्थापना में सहायक होती है।

9. "तू अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही न देना।" (निर्गमन 20:16)

  • यह आज्ञा सत्य और ईमानदारी के प्रति समर्पण को निर्देशित करती है। झूठी गवाही देना या झूठ बोलकर दूसरों को हानि पहुँचाना निषिद्ध है। यह न्याय और सामाजिक विश्वास की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

10. "तू अपने पड़ोसी के घर का लोभ न करना।" (निर्गमन 20:17)

  • यह आज्ञा ईर्ष्या और लालच के खिलाफ सचेत करती है। दूसरों की संपत्ति या जीवन शैली के प्रति ईर्ष्या करना मन की अशांति और असंतोष का कारण बन सकता है। यह आत्म-संयम और परमेश्वर द्वारा प्रदत्त आशीर्वादों के प्रति आभार को महत्व देता है।

निष्कर्ष

दस आज्ञाएँ मानव समाज की नैतिक और आध्यात्मिक नींव के रूप में कार्य करती हैं। ये केवल बाइबल की नैतिकता का संक्षेप नहीं हैं, बल्कि ये परमेश्वर और मनुष्य के बीच संबंधों की मौलिक नींव के रूप में भी मानी जाती हैं। इन आज्ञाओं का पालन करने से एक नैतिक, न्यायपूर्ण और परमेश्वर के प्रति समर्पित जीवन संभव होता है।

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